स्त्री
स्त्री
स्वतंत्र है ,
अब इन अर्थों मे
कि ,
देहरी के भीतर
दोहरी नही होती
एवं मर्यादाऐं लांघ कर
अब पूर्ण वीरांगना .
निःसंदेह
युगान्तर
संभव है
किन्तु ,
असंभव है ,
हर युग में
स्त्री का
लक्षमण रेखा
लांघना .
बेशक
संभव है
आंदोलित विचारों का
उदघोष ,
किन्तु ,
असंभव है ,
इस सत्य को
झुठला देना
कि ,
स्त्री मे मरा नही
नारी बोध.
यकीनन
स्त्री ब्रह्माण्ड है
आकाश है
नारी
इतिहास है
आज है
स्मरण रहे
नारी
केवल श्रद्धा
नही
युग युग का विश्वास है.
नम्रता सरन ” सोना “