स्त्री
जिंदगी उसकी यू गुजर रही है…
गुनाह तो नहीं पर सजा बनी है…
अपने मन का करना पाई…. हर लम्हा इम्तिहान दे रही है…
चाहती है कदम से कदम मिलाना….
पर पैरों में बेड़ियां पड़ी है……
ख्वाहिशें तो बहुत है उसकी ……पर समाज की बातें बड़ी है….
जब चाहा जीवन में कुछ करना…..
द्वार पर मजबूरियां खड़ी हैं….
इतने बंधन है सर पर ……..खुद की तो परवाह ही नहीं है….
सबको खुशियां देने वाली …खुद दुखों में आन गिरी है ….
जहां पांव में लगा हो कांटा …..मुख पर उसके शिकन नहीं है….
कठपुतली सा जीवन है उसका….. सबके मन की कर रही है..
बस बे मन ही वह चल रही है…..