स्त्री
गावँ की कच्ची सड़क पर
टहलती उस वृद्धा से
अनायास ही मिली थी
और ठहर गयी कुछ क्षण
70 पार मृदुल स्नेह वाली
जीवन के इस ठहराव पर भी
जो बह रही थी सतत
60 के दशक में 12वी करने वाली
खुद की ज़िद पर स्नातक
परास्नातक करने वाली
शिक्षिका हो कर पति
की ज़िद पर जबरन
त्यागपत्र दिलाई जानें वाली
वो स्त्री
आज भी मन में उन विद्रोहों की चिंगारी लिए
दिखावा कर रही थी
या साध रही थी अपना मन
और मैं स्तब्ध थीर
नदी सी शान्त उस महिला से मिल
जो बह रही थी सतत
शांत मृदुल
भीतर जाने कितनी विद्रोही
लहरें सम्भाले
एक विद्रोही स्त्री