स्त्री
धरती माँ , पिता आसमान है।
सृष्टि में जिसका जिक्र महान है।
क्षितिज सा हृदय जिसका,
स्त्री प्रकृति का वो अनुपम उपहार है ।
आगन्तुक पीढियां जिसके दम से है,
सफलता की सीढियां जिसके रहम से है
संस्कृति जिसके आँचल से झलके,
स्त्री संस्कृति का वो संसार है ।।
रहती बंदिशों में सदा,
रहती गर्दिशों में सदा,
ख्वाहिशों को करके दमन , जो मुस्कराए,
स्त्री आकृति का उत्तम वो प्रकार है।
आसुओं का समुंदर है ये,
गमों का सिकंदर है ये,
अहसास, मोहब्बत इसके मायने हैं
स्त्री जज्बातों से अलंकृत वो सुविचार है ।।
रूठना , मनाना , लाज, हया,
आवेश , द्वेष , नाज, दया,
मूरत वो जिसके रूप अनेक हैं।
स्त्री सौगातों से भरा वो पुरुस्कार है।
नदी, झरने , सुर , ताल यही,
दिन , हफ्ते , महीने ,साल यही,
वक़्त का पहिया जब जब घूमे,
स्त्री रब की शास्वत अविष्कार है।
क्षितिज सा हृदय जिसका , स्त्री प्रकृति का वो अनुपम उपहार है…।।
✍देवेंद्र