स्त्री रहने दो
मैं शक्ति हूँ,
मैं भक्ति हूँ,
मैं अनुरक्त हूँ,
मैं विरक्त हूँ.
मैं तृप्त हूँ,
मैं अतृप्त हूँ.
मैं धीरा हूँ,
मैं अधीरा हूँ.
मैं शांत वेग हूँ,
मैं झंझावात हूँ,
मैं मौन हूँ,
मैं मुखर हूँ.
मैं व्यष्टि हूँ
मैं समष्टि हूँ.
मैं आद्या हूँ
मैं अन्त्या हूँ
मैं सब हूँ,
मैं कुछ नहीं हूँ
मुझ पर ही सवाल क्यों?
मुझ पर ही कसौटी क्यों.
मुझ पर ही बंधन क्यों,
मुझ पर ही जंजीर क्यों.
नहीं चाहिए कोई परिभाषा
नहीं चाहिए कोई समीक्षा
नहीं चाहिए कोई संज्ञान
नहीं चाहिए कोई अनुदान
रहने दो बस मुझे मेरे रुप में
रहने दो बस मुझे मेरे नीड़ में
रहने दो बस मुझे स्त्री बन,
रहने दो बस मुझे पूर्ण बन
क्यों कि स्त्री हूँ स्त्री रहने दो.
डा आरती भदौरिया
सवाईमाधोपुर राजस्थान