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5 Mar 2023 · 1 min read

स्त्री मन

स्त्री का मन जैसे ,होये पावन गंगा की धार।

सागर सा गहरा होये,इसका बस प्रेम प्यार।

कितने घाव,कितने घाव,अंदर ये दबा बैठी

उनको भी अपना माने,जो गये इसे बिसार।

आंचल में दूध,आंख में पानी,रखे सदा छिपा

कोई जान न पाये, करें संभालें घर द्वार।

लाज का गहना सोहे , घूंघट सर पर राखे

बात हुस्न की जब चले,बन जाये नैन कटार।

लक्ष्मी होवे ये घर की,राखे मन में खूब प्यार

जो समझे मन को इसके,घर को दे संवार।

सुरिंदर कौर

Language: Hindi
1 Like · 197 Views
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