स्त्री भी इंसान है …
क्या पुरुष ही थकते है ,
क्या स्त्रियां नहीं थकती ।
क्या वही एकमात्र इंसान है ,
स्त्रियां क्या लोहे की बनी होती ।
कार्य करती वोह पुरुष से अधिक ,
जिम्मेदारी या मजबूरी समझ लो ।
मगर करती है बिना विश्राम किए ,
क्या उसे विश्राम की जरूरत नहीं होती ?
दफ्तर या दुकान से आकर पुरुष ,
पैर पसारकर सोफे पर बैठ जाता है ।
अपनी सेवा करवाने हेतु ।
और कहता है “मैं थक गया !
मुझसे कुछ मत कहो ,
बस पहले पानी फिर खाना खिला दो ।
और यदि हो सके तो पैर भी दबा दो ।
मालिश कर दो”
और जो स्त्री भी सुबह से शाम तक ,
खटती है घर के कामों में ,
उसका क्या ?
और यदि नौकरी वाली है ,
तो वही नौकरी भी करे ,और घर भी संभाले,
और तुम्हारी सेवा भी करे ,
उसकी थकान का क्या ?
उसके पांव कौन दबाए ?
उसकी मालिश कौन करे ?
उसको खाना कौन खिलाए ?
खाना तो छोड़ो एक गिलास पानी पिलाकर भी ,
कोई राजी नहीं।
इन सब बातों से ऐसा लगता है ,
की केवल पुरुष ही इंसान है धरती पर ,
स्त्रियां नहीं ।
उन्हें तो जैसे थकने का अधिकार भी नहीं ।
यदि वोह थकान का नाम भी ले ,
तो घर में हंगामा हो जाए ,
या कोई अनहोनी घटना ।
क्योंकि वो तो इंसान है ही नही ,
वोह तो लोहे की बनी हुई है न !
उनके पास दिल नही होता ।
वोह हाड़ मांस की नही बनी हुई है ।
उनको दर्द थोड़े ही ना होता है !
परंतु वास्तव में उनको दर्द होता है ।
उनके सीने में भी दिल है ,
प्राण है आत्मा है ।
हाड़ मांस का बना है उनका शरीर ,
कोई लोहे का नहीं बना होता ।
स्त्री भी इंसान है ।