स्त्री की वेदना
तू क्या समझ पायेगा
मेरे बदन के
दर्द की हद को
जिसे तू हर दिन
नोंचता है ।
सारे जहाँ की ख़ुशी
तू मुझमें
ढूँढता है
फ़िर भी तमाम
खामियाँ
मुझमें देखता है ।
मैं पीड़ित हूँ
समय दर समय
तेरे ज़ुल्म से
फ़िर भी
तू मुझको
बेदर्द समझता है ।