स्त्री का स्थान
स्त्री का स्थान कई स्थान से ऊंचा है
पर फिर भी उसे वह स्थान ना मिला
नहीं चाहती वह नारी देवी का स्थान बस
चाहती है वह सम्मान सदा अपनी एक पहचान सदा
है उसे सपने देखने का हक उन सपनों को पूरा करने का हक
उन सपनों को पूरा करने देना उसके पंखों को एक नई उड़ान भर लेने देना
मत कुचलना उनके पंखों को उसका भी यह खुला आसमान है
नारी है सब कुछ सह सकती है कमजोर नहीं वह अपने हक के लिए भी लड़ सकती है
उसने कभी किसी का स्थान ना छीना है और उसने अपनी ही शक्ति से अपना स्थान पाया है
9 महीने अपने गर्भ में रख एक नए जीव को नया नवजीवन देती है
मर कर भी खुद का एक नया जन्म लेती है
कितना त्याग वह करती है जन्म देकर भी उस नवजीत जीव को अपना नाम ना देकर एक पिता का नाम देती है
क्या वह स्थान नारी का कोई ले पाएगा
एक बेटी बनकर जन्म लेते हैं बेटी बहन एक नया रिश्ता लेती है
बड़ी हो जाती है जब वह किसी की पत्नी किसी की बहू तो किसी की मां बन जाती है
न जाने कितना त्याग वह करती है क्या हुआ अपना स्थान पाती है
नहीं चाहिए देवी का स्थान उसे बस वह हर रिश्तो से एक मान सम्मान और प्यार ही चाहती है
*** नीतू गुप्ता