स्त्री का घोषणा पत्र-2
स्त्री अब
अपने अस्तित्व की
खुलकर कर दे
घोषणा-
नहीं करेगी अब
पुरुष की गुलामी
नहीं बनेगी अब
उसकी प्रतिच्छाया
वह कर दे उद्घोष-
कि वह है पुरुष से भिन्न
बहुत अलग
उसके अधीन रहते तो
उसकी ‘आत्मा’ ही
मिट गई
वह रह गई
स्व-अस्तित्व विहीन
लेकिन अब वह कह दे
साफ-साफ-
‘मैं’ पहले ‘मैं’ हूं
किसी की पत्नी नहीं
पत्नी होना गौण है
मैं ‘मैं’ ही हूं
किसी की मां नहीं
मां होना तो गौण है
मैं ‘मैं’ हूं
किसी की बहन नहीं
बहन होना तो गौण है
मैं तुम्हारी कथित
‘देवी’भी नहीं.
मैं अब तक
पत्नी-मां-बहन-देवी
की जंजीर में सिमटी रही
इससे सिर्फ मेरा नहीं
‘मानव जाति’का भी हुआ
बेड़ा गर्क.
मैं तो अब केवल
‘इनसान’ कहलाना चाहूंगी
मैं बेशक हर रिश्ते और
कर्तव्यों का निर्वाह
करना चाहती हूं
पर साफ कहे देती हूं
मैं पहले केवल
और केवल ‘मैं’ हूंं