स्त्री अभिलाषा
[08/09/2020 ]
लावणी छंद, (16,14 यति अंत 1 2 3 गुरु से)
प्रथम प्रयास,
चाह नहीं बेरहम व्यक्ति,
अनपढ़ संग थोपी जाऊं ।
चाह नहीं पौधे कि तरह जब,
चाहे जहां रोपी जाऊं ।।
चाह नहीं है शादी की जो,
दहेज प्रथा में मर जाऊं ।
चाह नहीं अपने अधिकारों,
से भी वंचित रह जाऊं ।।
हम अवला को कुछ और नहीं,
नेह और सम्मान मिले ।
वंचित ना हो अधिकारों से,
घर वर सरल समाज मिले ।।
क्या भूल गए लक्ष्मी दुर्गा को,
क्या इनके बलिदान रहे ।
बंद करो नारी शोषण क्यों,
कोख में बेटी मार रहे ।।
अभिनव मिश्रा ( शाहजहांपुर)