स्त्रीलिंग…एक ख़ूबसूरत एहसास
स्त्रीलिंग पर जो मात्राएं
स्वर-व्यंजन के रूप में लगती हैं
वो उनके उच्चारण पर
गहनों सी सजती हैं ,
कहीं कानों के झुमके
किसी शब्द पर चूड़ियों सी ख़नख़ती
कहीं कमर की करधनी
कहीं पंक्तियों में पायल है छनकती ,
ये स्त्रियां अपनी पहचान
हर जगह बख़ूबी हैं छोड़तीं
किसी भी खाली किताब को
ख़ूबसूरत कहानियों से हैं भर देतीं ,
मन कितना भी खाली हो
ऑंखों में सपने भर कर रहती हैं
सीधे सपाट शब्दों को भी
मात्राओं से संवार कर रखती हैं ,
इनके होने का ख़ुबसूरत एहसास
खंडहरों को भी गुलज़ार करता है
शब्द संकलन भी इन मात्राओं से
ख़ुद को शब्दकोश कहता है ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा )