स्कूल का बस्ता
स्कूल का बस्ता, नया, महँगा या सस्ता।
होता है हर बच्चे के जीवन से अटूट रिश्ता।
स्कूल का पहला दिन, सबसे पहले जचता है बस्ता।
कॉपी, किताब, पेन, पेंसिल और टिफिन,
पानी की बोतल, रखी जाती थी गिन गिन।
हो तैयार जाते थे स्कूल, पढ़ने और खेलने।
घर आकर रख बस्ता, खा खाना दोड़ जाते मैदान की ओर,
अगली सुबह फिर शुरू हो जाता वहीं दोर।
एक आँधी आई, वक़्त ने ली करवट,
बंद हुए बस्ते, खुल गए लैपटॉप और मोबाइल।
अब ना दोस्तों का साथ, ना शिक्षक की डांट।
मिल रहा भरपूर, माँ पापा का प्यार।
पर ना जाने क्यूँ, अब अच्छा नहीं लग रहा ना ये यार।
छूट गई अच्छी पढ़ाई, याद आने लगी स्कूल से हुई जुदाई।
बस्ता भी धूल खा रहा है, और हम बच्चों को बुला रहा है।
अब हमें ही कुछ करना होगा, वक़्त और हालत से लड़ना होगा।
करके सभी नियमों का पालन, शुरू करना होगा नया जीवन।
फिर वो दिन दूर नहीं, जब हटा धूल बस्ते की,
हो तैयार, जायेंगे स्कूल और लौटाएँगे याद बचपन की।
और फिर से बतायेंगे सबको कि,
स्कूल का बस्ता, नया, महँगा या सस्ता,
होता है हर बच्चे के जीवन से अटूट रिश्ता।