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2 Sep 2021 · 1 min read

स्कूल का दौर

कुम्हलाई आँखे
ताक रही थी,
रास्ता स्कूल का
नाप रही थी।
रंग-बिरंगे चेहरे पे
उदासी बाहर से
झांक रही थी।

फूल खिलने लगे
लालिमा बिखरने लगी
भोर हो गया है,
तिमिर छट चुका है।

खिलखिलाहट से
स्कूल महक गया है,
थोड़ी चुप्पी- थोड़ा शोर
आ गया फिर वो दौर
बाँहो में बाँहे है डाले
धमा चौकड़ी पे है जोर!

-आकिब जावेद

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 294 Views
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