स्कूली जीवन
स्कूली जीवन
// दिनेश एल० “जैहिंद”
है कुछ गहरा रिश्ता हमारे बचपन और स्कूली जीवन में ।
हंसता-खेलता बालपन कुछ स्कूल में, कुछ वन-उपवन में ।।
थोड़ा पढ़ना, ज्यादा खेलना स्कूल जाना एक बहाना होता ।
खेलना घंटी से पूर्व, टिफिन में,फिर खेलते घर आना होता ।।
अंग्रेजी की घंटी में गायब रहना, गणित का ना पले पड़ना ।
क्या पढ़ना, केवल खेलना, हर दिन सिर्फ़ ये तमाशा करना ।।
कभी गुरूओं की खिल्ली उड़ाना, तो बच्चों की टाँग खींचना ।
तो कभी खेल-खेल में खेलते बच्चों के खेल में बाधा डालना ।।
कभी बुखार का, तो कभी सिर, तो कभी पेट-दर्द का बहाना ।
टास ना करने का अजब बालबुद्धि से गजब बहाना बनाना ।।
स्कूली-जीवन बालपन व बालमन, है अजीब इसका किस्सा ।
हर किसी का होता अनोखा जीवन जीवन का पहला हिस्सा ।।
=== मौलिक ====
दिनेश एल० “जैहिंद”
17. 06. 2017