सौ प्रतिशत
सुधा गुमसुम अकेली बैठी थी। आँखों में आँसू भरे थे। उसने इस परिवार को बनाने में अपना सौ प्रतिशत दिया था। परिवार के अतिरिक्त कभी कुछ सोचा ही नहीं। अपना कैरियर, खुशी, सपने,तन, मन सब दाँव लगा दिए थे। न दिन देखा न रात। बहुत खुश थी वो। अपने परिवार को उन्नत होता देखकर फूली न समाती थी। लेकिन आज बेटे के शब्द उसे आहत कर गए, मम्मी किया ही क्या है आज तक आपने।घर से बाहर निकलकर देखा होता तो पता चलता। सोच भी खुलती आपकी” टूट तब गई जब पति और बेटी ने भी उसकी हाँ में हाँ मिलाई। हुपचाप वहाँ से चली आई वो। आज आँसू भी उसकी बात नहीं मान रहे थे। फेल जो हो गई वो। जिसे सौ प्रतिशत मान रही थी वो तो जीरो था। आज समझ आ रही थी उसे अपने पैरों पर खड़े होने की कमी।
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद