सौन्दर्य को डर
किसी लावण्यमय्ी के कपोलों को छूकर आती है हवा।
सँदल सा हो जाता है जिस्म और जाँ इसका।
होते ही वहाशत में बहने लगती है हवा
कहीं भय तो नहीं लुट जाने का लावण्य की दोशीजगी।
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किसी लावण्यमय्ी के कपोलों को छूकर आती है हवा।
सँदल सा हो जाता है जिस्म और जाँ इसका।
होते ही वहाशत में बहने लगती है हवा
कहीं भय तो नहीं लुट जाने का लावण्य की दोशीजगी।
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