सौदेबाज़ी
सौदेबाज़ी
आया फिर देश में ये आम चुनाव
छुटभैये निकले लेकर पुरानी नाव
बरसों तक चखे बिरियानी पुलाव
मौका आया देख बदले अब भाव
झूठ-पुट सम्पुट,रूठ,गुटबाजी होगी
फिर से सत्ता की सौदेबाज़ी होगी
पादरी,पंडित संग में मुल्ला काजी
धर्म-मूल को भूल करते सौदेबाज़ी
प्रेम-पतंग काट,उचाट विष-वमन
स्वार्थ-साधना में उजारेंगे चमन
खुदा से जुदा,मेहमाननवाजी होगी
फिर से सत्ता की सौदेबाज़ी होगी
मधु ऋतु है, ये पराग चखते भौरें
होगी पतझड़,फूलेगी कहाँ फिर बौरें
खूब भ्रमण के,तो कहीं दिल के दौरे
रेत-ऊसर में भी सरपट पुष्पक दौड़े
बड़ी बातों की खूब लफ्फाजी होगी
फिर से सत्ता की सौदेबाज़ी होगी
-©नवल किशोर सिंह