सोशल मीडिया जंक | Social Media Junk
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——–++++आभाषी दुनिया++++——-
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कभी-कभी ऐसा लगता है कि सोशल मीडिया स्क्रॉल करना हमारी दिनचर्या का एक अनिवार्य हिस्सा बन गया है। पहले हम किताबें पढ़ते थे, टीवी पर समाचार देखते थे, लेकिन अब सब कुछ मेटा की कृपा से यहीं उपलब्ध हो गया है। हम में से कई लोग बिना तथ्यों की जांच-पड़ताल किए ही व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी की खबरों को सच मान लेते हैं और उन पर अपनी तरह-तरह की राय व्यक्त करने लगते हैं।
एआई के आने से कंटेंट बनाना आसान हो गया है। जो चीज़ वास्तविक रूप से संभव नहीं है, वह भी अब विज़ुअल्स और तस्वीरों के माध्यम से हमें सुलभ हो गई है। जो कुछ भी हम ChatGPT या Gemini पर टाइप करते हैं, उससे संबंधित सामग्री हमें तुरंत मिल जाती है।
सोशल मीडिया पर परोसा जाने वाला मनोरंजन, विज्ञापन, या सिनेमा-संबंधी वस्तु हमारे मस्तिष्क पर प्रभाव डाल रही है। हम सिनेमा की आभासी दुनिया और भौतिक दुनिया के बीच के अंतर को भूलते जा रहे हैं। सोशल मीडिया से दूर होने पर हम स्वयं को दुनिया से कटा हुआ महसूस करने लगते हैं। हम स्वयं को दुनिया में अकेला महसूस करने लगते हैं । कुछ कंटेंट से हमारी मानसिक और तार्किक क्षमता पर भी असर पड़ता है ।
ऐसे में यह समझना आवश्यक है कि वर्चुअल दुनिया वास्तविक नहीं है। इससे भी अधिक सुंदर, हसीन और अद्भुत भौतिक संसार है, जिसमें हम रहते हैं। चंद फॉलोअर, इंस्टा रील, फेसबुक पोस्ट, कुछ ट्वीट, और व्हाट्सएप स्टेटस आपकी पूरी दुनिया नहीं हो सकते। यहां परोसा जा रहा हर कंटेंट सच नहीं होता।
सप्ताह में दो दिन का ब्रेक लीजिए सोशल मीडिया की इस आभाषी दुनिया से और अपने आसपास के लोगों से मिलिए, बात कीजिए। अपने भविष्य के लिए चिंतन-मनन कीजिए। जो रास्ता आपके भविष्य की तरफ न जा रहा हो वहां से समय रहते यू टर्न ले लीजिए । किताबें पढ़िए, घूमिए और अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखिए। हंसते रहिए, मुस्कुराते रहिए, और अपने आस-पास के लोगों को भी हंसाते रहिए।