**सोशल मीडिया का भ्रम**
सामने देखकर नज़रंदाज़ करते हो,
सोशल मीडिया पर लाइक करते हो
आँखों में छुपे आंसू देख नहीं पाते
हर वक्त मुस्कुराने की आस रखते हो
न कभी समझ पाते हो तुम,
जैसा दिखते हो , वैसे तो बिलकुल नहीं हो तुम
तुम्हारी पोस्ट्स हैं दिल छू लेने वाली
लेकिन दिल में छुपे जख्म देख नहीं पाते हो तुम
सामने तो तुम कभी दिखते नहीं मुझे
लेकिन ऑनलाइन हमेशा नज़र आते हो तुम
रियल लाइफ में दूर हो तुम,
लाइक करके फिर क्यों नाटक करते हो तुम
पहले साथ बैठकर बातें करते थे हम,
अब केवल स्क्रीन पर ही दिल लगाते हो तुम
वो पुराने वक़्त, वो पुराने दिन,
अब तो बस यादों में ही रह गये हो तुम
कभी दूर से ही चुपके से देखो,
कभी तो दिल से बातें करो तुम,
सोशल मीडिया पर ही बंधे हो,
अब अपने दिल में भी बसा लो तुम
हर पोस्ट में अपना ही चेहरा,
क्यों इस ‘लाइक’ से दर्द भरते हो तुम
वो असली दुनिया खो गई कहीं,
बिना किसी दूरी के जहां रहते थे हम तुम
सोशल मीडिया की दुनिया में खोकर,
तुमने असली दुनिया को खो दिया है
बातों में असलियत को खोकर,
तुमने ख़ुद को ही कहीं खो दिया है
हम सभी उसी जाल में फंसे हैं,
कभी फोन में, कभी स्क्रीन में फंसे हैं
आंखों में छिपे दर्द को नहीं देख पाते
हम केवल ‘स्टेटस’ के जाल में फंसे हैं
फिर भी हम चुप रहते हैं,
चुप रहते हैं क्योंकि लाइक तो मिले,
लेकिन असल सुकून कहीं और है,
जो सोशल मीडिया के लाइक में न मिले
आओ, साथ में जीते हैं ये पल,
जो शब्दों में अनकहे रह गए थे,
मिलकर याद करते हैं उन पलों को आज
जो तस्वीरों और लाइक्स से दूर हो गए थे
सोशल मीडिया पर जिंदगी जीना आसान है,
तुम क्या इससे वास्तविकता को पहचान पाते हो
जो पास था, वो दूर हो गया है,
क्यों तुम इतना भी नहीं जान पाते हो।