सोलह श्रंगार….
…सोलह श्रंगार…
सुघड़ सलोनी रूपसी नार
किए बैठी सोलह श्रंगार
लाल है चोली लाल घघरा
नयन विशाल फब रहा कजरा
माथे बेंदी माँग सिंदूर
गुँथा हुआ वेणी में गजरा
प्रिय-छवि नयनन में साकार
किए बैठी सोलह श्रंगार
माँग टीका लग रहा नीका
चाँद भी उसके आगे फीका
फब रहा बाजूबंद मनोहर
औ कमरबंद कमर-वलय पर
नथ, कर्णफूल, गले में हार
किए बैठी सोलह श्रंगार
हाथ में चूड़ी-कंगना खनके
मुद्रिका हीरक दम-दम दमके
पादांगुली द्वय बिछिया सोहे
महावर पाँव रचित मन मोहे
छम-छम पायल की झनकार
किए बैठी सोलह श्रंगार
सुघड़ सलोनी रूपसी नार…
-सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद