सोने के पिंजरे में कैद परिंदा
सोने के पिंजरे में कैद परिंदा______✍️
सोने के पिंजरे में कैद परिंदा
पल – पल रहे उसको भय का फंदा
मानव तेरा ये कैसा गोरख धंधा
कितना तू निर्दयी है दरिंदा,
उड़ने को मै भी व्याकुल नभ में
मुझे भी होती है लालसा तन में
उन्मुक्त होकर फिरू मै गगन में
आत्मा को कैद किया तूने
तू है मानव कितना गंदा,
उड़ने दो हमे सपने संजोने दो
मै हूँँ नहीं पिंजरे का बाशिंदा ,
दूर पेड़ पर होगी अपनी दुनिया
अपना घरौंदा,
करे पुकार सोने के पिंजरे में कैद परिंदा ।।
______ स्वरचित______
Sandeep gour Rajput_______✍️