#सोच_कर_समझिए-
■ सोच कर समझिएगा-
【प्रणय प्रभात】
कभी सोच कर देखिएगा। बहुत कुछ समझ आएगा। इतिहास के मुताबिक एक दिन का बादशाह बन कर चमड़े के सिक्के चलाने वाला एक भिश्ती यदि स्थाई तौर पर सिंहासन संभाल लेता तो क्या होता? पूरी तरह संभव था कि सिक्कों के बाद हमारे बर्तन-भांडे, कपड़े-लत्ते, खेल-खिलौने सब कुछ चमड़े के होते। इस उदाहरण से आप भरोसा कर सकते हैं कि ईश्वरीय शक्ति क्षुद्र सोच वाले इंसान को बड़े नहीं, केवल छोटे अवसर ही देती है। ताकि उसकी मंशा और औक़ात सब समझ सकें। मैं तो यह बात 35 साल पहले कह भी चुका हूं। कुछ इस अंदाज़ में :-
”नहीं कुछ है तो सब कुछ है,
भला उस वक्त क्या होता?
मुक़द्दर हाथ में उसके अगर,
क़ानून दे देता।।
सलामत एक सिर मिलता नहीं,
ऐ यार ढूंढे से।
ख़ुदा गंजे को भूले से
अगर नाखून दे देता।।”
अभिप्राय बस इतना कि नीचे वालों की परवाह छोड़, ऊपर वाले पर विश्वास करें। ऐरे-गैरे-नत्थू-ख़ैरे, लल्लू-पंजू, रंगा-बिल्ला, चंगू-मंगू टाइप के लोग आते-जाते रहे हैं। आगे भी आते-जाते रहेंगे। बिगाड़ कुछ नहीं पाएंगे। ना सनातन-आस्था का ना सनातनियों का।
सुर-असुर संग्राम हर युग मे हुआ है। इस युग मे होना भी लाजमी है। किसी दो कौड़ी के शिक्षा मंत्री की उल्टी शिक्षा से न गंगा की धारा मुड़ेगी, न चन्दन की सुगंध जाएगी। जो शाश्वत है शाश्वत रहेगा। श्वान-श्रगालों के ऊपर मुंह कर रोने से कुछ नहीं होता। जुगनू सूरज की ओर सदा से थूकते आए हैं, जो उनके अपने चेहरों पर गिरता आया है। चौंकिए मत, भौंकने दीजिए। प्रवृत्ति से अधम जो हैं बेचारे। फिर हमारी मानस जी मे लिखा भी है :-
“जेहि विधिना दारुन दुख देही।
ताकी मति पहले हर लेही।।”
जय राम जी की।
जय रामायण जी की।।
जय बाबा तुलसीदास की।।।
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