सोच
ये सोच सोच कर मैं हारी,
जीवन की बाजी मैने क्यों नहीं मारी।।
सोच सोच कर दिल को कर लिया कमजोर,
बहुत रोका दिमाग ने पर नहीं चला कोई जोर।।
क्यों हर दम सोच का गहरा पहरा हैं,
क्यों हर दम चिंताओं ने घेरा डाला हैं।।
क्यों मैं निराश होती हर बात पर,
ये जग तो ऐसा ही हैं हर हाल पर।।
अब मैं सोचती हूं ये वक्त न रूकेगा,
ये न मुझसे कुछ पूछेगा।।
ये यूं ही चलता रहेगा,
मेरा जीवन सोच मे डूबा यूं ही बीत जाएगा।।
कृति भाटिया।।