सोच
एक आग कल भी लगी थी।
एक आग आज भी लगी है।।
कल आग अंग्रेजों ने लगाया।
आज अँग्रेज़ी ने लगा रखी है।।
अँग्रेज़ी का खेल तो देखिये हुजूर ।
जीवित पिता को डेड बना डाला।
भला इसमें उस पिता का क्या कसूर ।।
कल तक जो बेटा चरणों तक झूकता था।
आज घुटनों पर ही रुक जाया करता है।।
कल पिता की चलता था जो अंगुली पकड़ कर।
आज उंगली छुड़ाता बरबस ही दिख जाता है।।
कल लोगों में प्रेम भरपूर दिख जाता था।
आज प्रेम का व्यवसाय सा दिखता है।।
एक आग कल लगाई थी भारत को बनाने को ।
एक आग आज लगाई जाती है भारत को मिटाने को।।
कल लोग गुलाम थे पर मन में आजादी थी।
आज जब आजादी है मन में सिर्फ बरबादी है।।