सोच रही गौरैया….
सोच रही गौरैया…..
सींखचे पर खिड़की के आज आ बैठी एक गौरैया
देख रही थी टुकुर-टुकुर खामोश थे भाभी-भैया
चिंतामगन बैठे थे दोनों बीच में थी एक गज की दूरी
कोई किसी को टच करे न हुई ऐसी क्या मजबूरी
काम पर भी नहीं जाते क्यों खाली बैठे घर भैया
सोच रही गौरैया…
रद्द किया कहीं आना-जाना रद्द किए सब न्योते
कितनी बार उठ-उठकर दोनों हाथ रगड़कर धोते
एक कमरे में चुन्नू अकेला दिखी एक में बूढ़ी मैया
क्यों नहीं छत पर आते भैया उड़ाने अब कनकैया
सोच रही गौरैया…..
जगी जिज्ञासा मन में उसकी था कोई ओर न छोर
कातर नज़रों से देख रहीं क्यों भाभी उसकी ओर
पिंजरे में बंदकर मुझको जो कहतीं थी सोनचिरैया
उनके लिए बन गयी पिंजर अपनी ही आज मड़ैया
सोच रही गौरैया….
सुना एक वायरस ‘कोरोना’ उड़ चीन देश से आया
मंडरा रहा समूची दुनिया पर काल रूप धर आया
लाचार बेबस आज मनुपुत्र फँसी मझधार में नैया
छिन जाएगा दानापानी मेरा गर रहे न भाभी भैया
सोच रही गौरैया….
डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र)