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2 May 2024 · 1 min read

सोच बदलें

सोच बदलें

झुग्गी-झोंपड़ियों के
आपस में लड़ाई-झगड़ा करते
खेल में समय बिताते
रात को अपने शराबी पिता से
पिटते-कुटते बच्चे,
कूड़े के लगे ढेरों में से
प्लास्टिक, पन्नी,काँच बीनते
जिन्हें बेच कर मिले पैसों पर
चल जाता है घर का खर्च,
लाल बत्ती पर रुकी
गाड़ियों के शीशे खटखटा कर
गुब्बारे बेचते, कार के शीशे साफ करते
लोगों से झिड़कियाँ खाते बच्चे,
विद्यालय के निर्धारित कपड़े पहन
कंधे पर बस्ता, पानी की बोतल
लटका कर जाते बच्चों को
बेबसी से निहारते हुए
विद्यालय जाने को तरसते ये बच्चे
बाल दिवस का अर्थ जानते ही नहीं
कभी विद्यालय देखा तक नहीं,
हम सब अपनी सोच बदलें
इनके जाते हुए समय को रोक लें
करें कुछ ऐसा जा सकें ये विद्यालय
पढ़-लिख कर बने अच्छा वर्तमान-भविष्य
तभी होगा सार्थक मनाना बाल दिवस।

#डॉभारतीवर्माबौड़ाई

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