“सोच अपनी अपनी”
“सोच अपनी अपनी”
कोई सोचता कुछ कोई कुछ सोचता
सबका काम करने का तरीका अलग
हर कोई अपनी मर्जी से जीना चाहता
तभी तो कहते हैं सोच अपनी अपनी,
कोई रहता हमेशा अपनी ही अकड़ में
किसी किसी को लगे पंचायत ही प्यारी
किसी को करना काम पूर्ण ईमानदारी से
किसी किसी को हमेशा रसूदखोरी करनी,
किसी के मन भाए हरा भरा वातावरण
किसी किसी को बहुमंजिला इमारत भाई
किसी को लगे अपनी झोपड़ी स्वर्ग जैसी
राग अपना अपना ढपली अपनी अपनी,
किसी को खाना हमेशा चाट और पिज्जा
पूनिया को शाकाहारी भोजन ही है भाता
किसी किसी को कोल्ड ड्रिंक्स लगी अच्छी
मीनू की पहचान सादा खाना गरम पानी,
किसी को अच्छा लगे सिर्फ व्यापार करना
किसी किसी को भाए आलस में गोते खाना
राज चाहे हमेशा घूमता ही रहूं देश विदेश
हर किसी की होती है अलग अलग कहानी।