*सोचो वह याद करो शिक्षक, जिससे थे कभी गढ़े हम थे (राधेश्यामी
सोचो वह याद करो शिक्षक, जिससे थे कभी गढ़े हम थे (राधेश्यामी छंद)
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सोचो वह याद करो शिक्षक, जिससे थे कभी गढ़े हम थे
जिसकी कक्षा में बैठ-बैठ, कुछ जीवन-पाठ पढ़े हम थे
उस शिक्षक के उपकारों को, जो सौ-सौ शीश झुकाता है
आशीष अलौकिक पाता है, वह धन्य-धन्य हो जाता है
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451