सोचा रात भर मैंने
सोचा रात भर मैंने, मैं क्यों तक़लीफ़ सहता हु,
मर्ज़ मेरा तुमको पता है, मैं फिर क्यों दर्द सहता हु,
आईने के सामने खड़े होकर, मैं तुमको पुतलियों में ढूंढता हु,
तिनका नहीं तुमको पता है, फिर पलके खोल में मुंद लेता हु,
तैर रहा दिल में प्यार तेरा, मैं तुमको वंहा किनारा दिखता हु,
साहिल पर दुब आता हु, फिर भी खुद को प्यासा ही पाता हु,
सोचा रात भर मैंने, मैं क्यों तक़लीफ़ सहता हु,
मर्ज़ मेरा तुमको पता है, मैं फिर क्यों दर्द सहता हु,