सोचा नहीं था एक दिन , तू यूँ हीं हमें छोड़ जाएगा।
सोचा नहीं था एक दिन , तू यूँ हीं हमें छोड़ जाएगा,
हर पल की खामोशी में फिर, बनकर तू याद सताएगा।
वक्त जो संग बीता था, क्या फिर लौट के आएगा,
या जज़्बातों का ये बवंडर, हमको डूबा ले जाएगा।
आँखें यूँ बंजर होंगी कि, अश्क़ों को कौन रुलाएगा,
बस एक बोझ सा होगा मन पर, और ये पत्थर बनता जाएगा।
मुस्कानें सिर्फ तस्वीरों में देखेंगी, युग उदासियों का ठहर जाएगा,
आभास तो तेरा हर पल में होगा, पर आँखों को तू तरसायेगा।
बेचैनियों में बसी रातें होंगी, सपनों में तू तलाश बन भटकायेगा,
एक क्षण का धूमिल संग भी होगा, जो आँखें खुलते हीं बिछड़ जाएगा।
कोरी सी एक आस होगी कि, वक्त कभी तो खुद को दोहराएगा,
आशीषों भरा वो विरल जो स्नेह था, छत बनकर सर पर छायेगा।
पर यथार्थ की सत्यता को, दिल ये कब तलक ठुकराएगा,
मृत्यु के आलिंगन के उपरान्त, पृथक हुआ जीवन कैसे मुस्काएगा।