सोचता हूं कि क्या लिखूं?
सोचता हूं कि क्या लिखूं?
कोई अल्फ़ाज़ या दास्तान लिखूं।
पढ़ा कोई किस्सा लिखूं
या सुना हुआ फरिश्ता लिखूं
कि महसूस होता हर एहसास लिखूं
या पल पल का अंदाज लिखूं
लिखूं के जमाने से कोई तजुर्बा
या अपना ही फलसफा लिखूं
राई सी जिंदगी पर
कोई हिस्सा बिखरता लिखूं
या बंजर में किसी उम्मीद सा
आब की तरह करिश्मा लिखूं।
लिखूं कि हर बात लिखूं
या खामोश बेजुबां हालात लिखूं
समझूं कि ये दुनिया एक अजाब
जहां मेल बदन का हिसाब लिखूं
या तैरकर कोई दरिया
पाक़ीज़ा सैलाब लिखूं।
पीठ पीछे का कोई दरिंदा लिखूं
या नूर सा मेहरबां लिखूं
या फिर रहने दूं, सब छोड़ दूं
किताब के ही कुछ पन्नों पर
एक प्यारा सा फरमान लिखूं
जिसके दरमियान कहीं-कहीं
कोई राज़ अज़ान लिखूं,
सोचता हूं कि क्या लिखूं?
कोई अल्फाज या दास्तान लिखूं।
शिवम राव मणि