!! सोचता हूँ !!
सोचता हूँ के मैं भी मशहूर हो जाऊँ।
पर लगता है कहीं मगरूर ना हो जाऊँ।
ग़र मगरूर ना भी हुआ तो।
कहीं किसी कि नज़र में ना आ जाऊँ।
नज़र में आया तो कहीं खटक क गया तो।
उसकी निगरानी में ना आ जाऊँ।
ग़र निगरानी में रहा तो।
बात बात पर कहीं घेरा ना जाऊँ।
ग़र हर बात पर घेरा गया तो।
कहीं अख़बार कि सुर्खियों में ना आ जाऊँ।।
ग़र अख़बार कि सुर्खियों में रहा तो।
कहीं अख़बार कि तरह रद्दीयों में ना बेचा जाऊँ।।
मैं”पुष्प”हूँ बस तमन्ना है के धीरे-धीरे खिल जाऊँ।
सजावट से अच्छा महक़ कर हवा में बिखर जाऊँ।।
शशांक पारसे “पुष्प”