— सोचता हूँ —
क्या मिला इस धरती पर आकर
आज तक यह समझ नहीं आया
किस रास्ते पर चले और कैसे चले
बड़े मोह माया में फस गया बेचारा
आगे बढ़ता है तो मरता है
पीछे खिसके तो फिर डरता है
वर्तमान में जिए तो दिल डरता है
बड़ी कश्मकश में है ये बेचारा
किस को कहे अपना किस को पराया
सब का बोझा है सर पर उठाया
हर सांस में घुटन सी महसूस करता
रहता हर दम घबराया सा बेचारा
अजीत कुमार तलवार
मेरठ