सोचता हूँ तुम्हें
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हर पल सोचता हूँ तुम्हें!
तुम्हारी मंद मुस्कान को,
उगते हुए दीप्तिमान के
स्वागत सत्कार में लालायित!
तुम्हारी बिछने की प्रवृत्ति को,
हर पल सोचता हूँ तुम्हें!
सांझ होने पर सिकुड़ते,
तितली से रंगीले पर।
होते उदास ज्यों,
किसी प्रिय के जाने पर।
हर पल सोचता हूँ तुम्हें!
हथेलियों को फैलाकर
नयनों के ऊपर,
ताकने की मुद्रा में।
कर देना स्व को कैद,
अंधकार में।
हर पल सोचता हूँ तुम्हें!
आजीवन यही सिलसिला,
दुनिया से विदा लेने तक।
ये घोर तपस्या ही तो है!
हे तपस्वी सुमन!
हरपल सोचता हूँ तुम्हें!
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