सोई गहरी नींदों में
सोई गहरी नींदों में, उठ जाती हूं मैं
देख कर तुमको ख्वाबों में, तड़प जाती हूं मैं
वही चेहरा वही आवाज़, वही चाह
क्यों रुलाते हो मुझे , मुझे क्यों तुम्हारी ही याद आती है
सोचती हूं जब भी खुदके बारे में
तुम जज़्बातों को घेर लेते हो
छूकर मेरी सांसों को, मेरी तन्हाई को छलते हो तुम
और कभी–कभी अपने होने का सबूत देते हो तुम
मुझे यादों से मुक्त करो, मुझे ख्वाबों के मुक्त करो
थक गई हूं मैं,
सोई गहरी नींदों में, उठ जाती हूं मैं
देख कर तुमको ख्वाबों में, तड़प जाती हूं मैं।