सोंच
सबसे पहले आप विचार कीजिये कि आप किसी को किस हद तक पसंद या नापसंद कर सकते हैं. अगर आप किसी के प्रेमी या शत्रु बिना तथ्य के सिर्फ विचारों के आधार पर हो जाएंगे तो आप जैसों के लिए ही आजकल की ट्रेंडिंग संज्ञा अन्धभक्त और अन्धविरोधी है. उदाहरण भले राजनीतिक हो या सामाजिक लेकिन इनसब में उस मानसिकता और सोच की चर्चा जरूर होनी चाहिए जिससे इस वक़्त हर दूसरा इंसान पीड़ित है. इसका सबसे बड़ा कारण हमारे समाज मे चल रहे अलग-अलग राजनीतिक/व्यावसायिक हथकंडे में सोशल मीडिया की भूमिका है.
हम विसंगत समर्थन और विरोध में पूरी तरह डूबते जा रहे हैं. जिसमें अहम रोल सोशल मीडिया का भी है. हम जिस विचार के प्रति आकर्षित हैं, वैसे ही लेख पढ़ते हैं, वैसे ही लोगों को अपने आस-पास रखते हैं. अगर कोई हमारे विचार से अलग कहीं कुछ कमेंट करता दिखे तो हम कूद पड़ते हैं. अपना सारा सामर्थ्य और ज्ञान उस बहसबाजी में लगा देते हैं, भले ही बहसबाजी का स्तर बातों के बढ़ने के साथ गिरता चला जाये, लेकिन हम टकराव जारी रखते हैं. हम बहसबाजी करना तो जानते हैं लेकिन अंत मे निष्कर्ष निकालना तो हमने सीखा ही नहीं. इतना ज्ञान बघारने के बाद क्या पाया ये पता ही नहीं चल पाता. कभी-कभी उस बहसबाजी को हम दिल से लगा लेते है. और जिस इंसान के साथ बहस चल रही होती है उसके बारे में एक धारणा बना लेते हैं. अगर बहस गली-गलौच तक गयी हो तो ब्लॉक/अनफ़्रेंड वाली प्रक्रिया भी लगे हाथ सम्पन कर देते हैं.
यह बहुत समय से चली आ रही लंबी प्रक्रिया का एक छोटा स्वरूप होता है, जिसका हम हर रोज हिस्सा बनते हैं लेकिन हम इस प्रक्रिया के बारे में जल्दी सोचते नहीं. सोचे भी तो कैसे हमें जल्दबाजी होती है, किसी का पोस्ट छूट न जाये, किसी में कमेंट करना रह न जाये, लेटेस्ट मीम्स या फनी वीडियो के लिए भी तो अपडेट रहना है. कोई मैसेंजर में उलझा होता है तो कोई कमेंट्स की रिप्लाई में. हम अपनी पसंद और विचार के लोगों का एक दायरा बना लेते हैं. जाने-अनजाने में हम सोशल (मीडिया) होते हुए भी सीमित होते चले जाते हैं. हम जब कोशिश करते हैं अलग-अलग तरह के लोगों को जोड़ने की, उन्हें पढ़ने की, उन्हें जानने की, अपने सोच के दायरे को बढ़ाने की, तब हम कुछ वक्त के लिए उस सीमा को तोड़ने में थोड़े वक़्त के लिए सफल जरूर होते हैं लेकिन जैसे ही हम इस सोशल मीडिया की दैनिक दिनचर्या को फॉलो करने लग जाते हैं वैसे ही हमें ये एक दूसरे दायरे में कैद करना शुरू कर देती है.
इसने एक चक्रव्यूह रचा हुआ है जो हर कदम पर हमें बांधने की कोशिश करती है. हमें अहसास दिलाती है कि हम जहां रुके हैं वो हमारे लिए आदर्श है. हमारे व्यवहार में ऐसे बदलाव होते हैं जिसे महसूस करने का होश भी नहीं रहता. एक दिन यही बदलाव हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन जाते हैं. वो हमें आत्ममुग्ध करने का एक भी मौका नहीं चूकती है. इंसान होता ही ऐसा है उसे हर वो चीज आकर्षित करती है जो उसे अच्छी दिखाई देती है. अगर उसकी आत्ममुग्धता में फंस कर वहीं ठहर गए तो वो फिर से हमारे लिए एक नए संसार की रचना कर देती है जिसे हम पूरी दुनिया समझ कर खुद को उसी के इर्दगिर्द सीमित कर लेते हैं.
हम कहने को स्वतंत्र हैं लेकिन हकीकत ये है कि हमारे पास अपना कोई ठोस स्वतंत्र विचार नहीं, अगर आप महसूस करो, बारीकी से विचार करो तो पता चलेगा हम हर वक़्त हम किसी न किसी से प्रभावित हो रहे होते हैं. हमारे विचारों को कभी-कभी कोई और निर्देशित कर रहा होता है. हम सोशल मीडिया में रोज किसी जरूरी मुद्दे या किसी आम बात पर विचार कैसे बनाते हैं, कभी सोचा है? क्या हम अपनी मर्जी से सब करते हैं या हमसे हमारे आस-पास का वातावरण (जो काफी लंबे समय से बन रहा होता है) करवाता है. हम कदम-कदम पर निर्देशित होते रहते हैं, ऐसा हमें अहसास नहीं होता क्योंकि हम ठहराव से दूर होते हैं, हम भागदौड़ का हिस्सा होते हैं. कब-कहाँ-कैसे-क्यों हमारे विचारों में परिवर्तन होना है इसका निर्धारण भी वही करते हैं. हम बंधे हुए हैं विभिन्न दायरों में. हम अपनी जिस सोच को सोशल मीडिया में रखते हैं, सोशल मीडिया उस सोच को अपने पास स्टोर करती है, उसी सोच के इर्दगिर्द एक दुनिया हमें परोसती है.
समझना है और विचार करना है कि हम किस मकड़जाल में फंसते जा रहे हैं. ऐसा दौर भी आएगा जब वास्तविकता और अवास्तविकता में भेद करना कठिन हो जाएगा. हम जिसे अपनी दुनिया समझ बैठे हैं असल में वो हमारी दुनिया है ही नहीं. वो असली दुनिया का छोटा सा हिस्सा मात्र है. इस आभाषी दुनिया का क्रिएटर कोई और ही है हम तो सिर्फ किरदार हैं. वो क्रिएटर हमें हमारे रुचि की दुहाई देकर अपनी रुचि से हिसाब से गढ़ रहा होता है. क्या कभी सोचा है जब भी सोशल मीडिया में कोई नया और रोचक फीचर आता है तब उसे इस्तेमाल करने का फैसला किस आधार पर लेते हो? सोचना उसी के आस-पास बहुत से सवालों के जवाब मिल जायेंगे..
••••••••••••••••••••धन्यवाद•••••••••••••••••••••••••••••••••••••