सॊऽहं
यह कर्ता, कारण,क्रिया,कर्म, सब मेरे ही तो हैं स्वरूप;
मैं सेवक , मैं ही सेव्य, अतः करता हूं अपना अभिनंदन!
मैं रवि शशि ,मैं ही तारागण, मैं दिग दिगन्त, मैं नील गगन;
मैं धरा,सिंधु विस्तार स्वयं,मैं ज्योति, अनल,जल और पवन;
अणु अणु, कण कण में भरा हुआ मैं सूक्ष्म तत्व , मैं ही विराट;
उत्थान पतन , सुख दुःख सब में, होता रहता मेरा नर्तन!
जप, तप, मख , योग सभी हूं मैं ,मैं निर्विकार,मैं निराकार;
आश्रित जिस पर आधार सभी, मैं ही तो हूं वह निराधार;
मैं भूत, भविष्यत,वर्तमान, दिन रात मुझी से चलते है;
युग, संवत्सर, ऋतु,वर्ष, मास, मुझसे गुण्ठित जग अवगुण्ठन !
वन,उपवन, गिरि, गह्वर, निर्झर, नद, नदी सभी मेरे स्वरूप;
साकार सभी जीवों में हूं,पर फिर भी रहता हु अरूप;
मैं राज्य और राजेश स्वयं, संसृति के मुझसे संस्कार;
मैं सॊऽहं हूं,इसीलिए आज करता हूं अपना ही वंदन!