सैलाब
हां नहीं रुकता है किसी के रोके,
मेरे अश्कों का ये अविरल सैलाब सनम।
हां रुके भी तो आखिर कैसे रुके,
झट से टूटे,थे देखे जो ख्वाब नीलम।
आजकल चांदनी भी तन्हा है,
लगता कि रूठा सा है महताब सनम।
आजकल बागबां भी सूखा है,
गुलों का भी खो गया शबाब सनम।
तू ही कहदे कि कैसे रोकूं मैं,
तेरी यादों का जो उमड़ा है फिर सैलाब सनम।
नीलम शर्मा