सैनिक के संग पूत भी हूँ !
हूँ परिवार का कर्ता-धर्ता, घरबार का बोझ उठाऊँगा।
सैनिक के संग पूत भी हूँ, सो पुत्र का धर्म निभाऊँगा।।
रूठें बगियाँ या छूटे अंगना, हर रिश्ते पर महकाऊँगा।
मिलने वाली है अब छुट्टी, लो मैं भी कल घर जाऊँगा।।
गुजरी होली गई दीवाली, छठ भी तो बीता जाता है।
मेरे न होने से अक्सर घर की, खुशियाँ रीता जाता है।।
लोहड़ी की है रेवड़ी बाकी, मेले वाले खेल भी खेलेंगे।
डोरी मांझे और पतंगों से, फिर वो सारा अम्बर घेरेंगे।।
दिप जलेंगे तब फिर से जब, घर को कदम बढ़ाऊँगा।
खुशियों के रंग भर-भर अंजुली, दोनों हाथ उड़ाऊँगा।।
गिन-गिन पूरे वर्ष के हर एक, त्योहारों को मनाऊँगा।
मिलने वाली है अब छुट्टी, लो मैं भी कल घर जाऊँगा।।
शाल ले जाऊँगा बाबा को, हरदम ठंड से रहते कँपते जी।
दादी की है छड़ी जरूरी, गिर जाती वो चलते-चलते जी।।
माँ के खातिर एक नई साड़ी, और चुड़ी का भेट रहेगा।
बहना खातिर सूट दुपट्टा, और सलवार का सेट रहेगा।।
छाँट के भाई के शौक की, बक्से में वर्दी रख लाऊँगा।
पापा खातिर एक मोजा और, जर्सी भी धर आऊँगा।।
जीजा के पसंद का ट्रैक सूट, कैंटीनवां से मंगवाऊँगा।
मिलने वाली है अब छुट्टी, लो मैं भी कल घर जाऊँगा।।
घर की टूटी टाट मड़ईया, अभी उनको भी बनवाना है।
पानी की बड़ी किल्लत है, नलका अंगना खुदवाना है।।
दिन कम पर है काम बहोत, हर काम हमें निपटाना है।
हर उलझे रिश्ते चुन-चुन कर, बारीकी से सुलझाना है।।
दोस्तों को उनके चाहत वाला, भी समान पहुँचाऊँगा।
हुड़दंगों के वह साथी पुराने, उन पर रौब जमाऊँगा।।
है तैयारी करनी बड़ी कि, कैसे किसको समझाऊँगा।
मिलने वाली है अब छुट्टी, लो मैं भी कल घर जाऊँगा।।
इंतजार जिसके नज़रों में, और लब पर है प्यास भरी।
एक प्यारी अर्धांगनी है, जिसने है मुझसे आस करी।।
चुन-चुन कांटे दुख के, गुलदस्ता खुशी की भेजती है।
सबके अरमानों की झोली, जतन से बड़ी सहेजती हैं।।
कैसे दिल को है बहलाती, इस बार पूछकर आऊँगा।
पर कैसे हम हैं कष्ट झेलते, यह राज नही बतलाऊँगा।।
वापसी होगी नम आँखों से, बात ये सबसे छिपाऊँगा।
मिलने वाली है अब छुट्टी, लो मैं भी कल घर जाऊँगा।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित ०६/१२/२०२३)