सैनिक की व्यथा
“सैनिक की व्यथा ”
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घिरा हुआ है वतन आज
देश में छुपे गद्दारों से
दुश्मनों का मुझे डर नहीं
ओढ़े बैठे खाल भेड़ की
डर है ऐसे छुपे यारों से
सत्ता में बैठे खादीधारी
हमको लड़वाकर आपसे में
हिन्दू मुस्लिम में बाँट रहे
हितैषी बनकर आते सामने
पर्दे के पीछे दूध मलाई चाट रहे
कैसे पार लगेगी देश की नैया
इन घुनी हुई पतवारों से
मुझको घायल कर रहे
जो खेले मेरी छाती पर
अब छलनी कर रहे मेरा आँचल
अपनी द्वेष की तलवारों से
बचा लूँगा वतन को मैं
दुश्मन की चालों से
कोई बताये मुझे कैसे बचूं मैं
खुद अपने ही वारों से
घिरा हुआ है वतन आज
देश में छुपे हुए गद्दारों से |
“सन्दीप कुमार”