सैनिक की नवविवाहिता पत्नी का दर्द*
दिखा कर प्यार के दिन चार ,तुम सीमा पे जा पहुँचे,
भुलाकर प्यार तुम मेरा , मुहब्बत माँ(भारत)से कर बैठे
निभाने को कसम संग में ,तुमने जीवन की खायी थी,
लुटाकर जान अपनी तुम , प्यार हिन्दोस्तां से कर बैठे||
दिखा कर प्यार के दिन चार तुम सीमा पे जा पहुँचे
अभी छूटी न थी मेंहदी महावर भी न धूमिल थे,
मेंरे हाथों के कंगन के अभी नग भी न छूटे थे|
मेंरी शादी की माला के अभी ना पुष्प थे सूखे,
तिरंगे में लिपट आए शायद तुम मुझसे रूठे थे||
दिखा कर प्यार के दिन चार तुम सीमा पे जा पहुंवे
खता मुझसे हुयी थी क्या, क्या अपराध था मेरा,
तोड़कर प्यार का बन्धन लिया परलोक में डेरा|
सजायी थी मेंरी माँघ, जो तुमने प्यार से उस दिन,
धुलाकर चल दिए तुम तो सुहाग सिन्दूर वो मेंरा||
दिखा कर प्यार के दिन चार तुम सीमा पे जा पहुंचे
तुम्हारे बिन जहाँ में अब मेंरा रह कौन जाएगा,
मैं जाऊँगी जिधर अपना न कोई नज़र आएगा|
तुम्हारे बिन ए सूनी ज़िन्दगी अब कैसे जिऊंगी
सभी के मुख से अब देखो , विधवा ही नाम आएगा।
दिखा कर प्यार के दिन चार तुम सीमा पे जा पहुंचे
तिरंगे में लिपट आये शायद तुम मुझ से रूठे थे
तिरंगे में लिपट आये शायद तुम मुझ से रूठे थे
शायद तुम मुझ से रूठे थे
शायद तुम मुझ से रूठे थे
डॉ मंजू सैनी
गाजियाबाद