“सैनिक की चिट्ठी”
सुनो ! अब मैं लौट के न आऊंगा,
एक केसरिया कफन साथ लाऊंगा।
सुनो नवबधू मेरी तुम रोना मत,
दिखाकर प्यार के चार दिन ।
मुझे भूलकर तुम प्यार, भारत माँ से कर बैठे,
निभाने को तुमने संग जीवन भर खाई थी कसमें।
लुटाकर जान तुम हिन्दोस्तां से प्यार कर बैठे,
अभी छूटी न थी मेहंदी ,महावर भी ना धूमिल थे ।
मेरी शादी के माला के पुष्प भी ना सूखे थे,
मेरे हाथों के कंगन के, नग भी न छुटे थे ।
खता मुझसे क्या हुई जो हमसे रूठे थे।
सजाई थी मेरी मांग,
जो तुमने प्यार से उस दिन,
मिटाकर चल दिये हो तुम सिन्दूर मेरा।
सुनो नवबधू तुम मेरे ऊपर से गर्व मत खोंना,
तुम मांग का सिंदूर मत धोना।
क्योंकि मैं मरा नही,शहीद हुआ हूं,
तुम्हारे दिल में मैं अब भी जिंदा हूं।
माफ करना तुम्हे मैंने ,एक किस्सा नही बताया था,
मैन देश की मिट्टी से इश्क जताया था।
सुनो मेरे साथियों घर जाकर कुछ मत कहना,
यदि हाल मेरी माता पूछे तो, जलता दीप बुझा देना।
यदि हाल मेरी बहन पूछे तो सूनी कलाई दिखला देना,
इतने पर भी ना समझे तो राखी तोड़ दिखा देना।
यदि हाल मेरे पिता पूछे ,हाथों को सहला देना,
इतने पर भी ना समझे तो,लाठी तोड़ दिख देना।
यदि हाल मेरी पत्नी पूछे तो,
मस्तक तुम झुका लेना,
इतने पर भी न समझे तो
आंसू तुम छलका देना।
यदि हाल मेरा भाई पूछे तो,
खाली राह दिखा देना,
इतने पर भी ना समझे तो,
सैनिक धर्म बता देना।
लेखिका:- एकता श्रीवास्तव ✍️
प्रयागराज