सैनिक का सावन
पात पात हरियाली छाई , सावन की है ये अंगड़ाई
महकी वसुधा महकी माटी,अब फुहार ने तपन मिटाई
आशाओं के पुष्प खिले हैं , बिछड़े कितने मीत मिले हैं
नेह के सारे बंध खुले हैं ,धानी चुन्दरिया उड़ उड़ गाई
एक सीमा पर प्रहरी बैठा, सजनी का सोचे वो मुखड़ा
गाल पे भीगा आया टुकड़ा, और तभी बजली कड़काई
कल परसों की बात सुनाऊं, एक सजनी की नियति बताऊँ
अभी तो मेंहदी हाथ लगी थी, जब अर्थी को दी उसने विदाई
समय अगर न पानी वरसे, खलिहानों की धरती तरसे
कोई न करना गलती फिर से, देखो किसको राज थमाई