सैनिक का खत।
अब बर्ष नया फिर आया है,
दिन आज बहुत ही अच्छा है।
पर तुम न हो तो क्या मतलब,
ये देश तुम्हारा अच्छा है।
खत लिए हाथ में वो सैनिक,
आंखों में अश्रु छिपाए था।
माथे पर सिकुड़न पल भर की,
अगले ही पल चौकन्ना था।
नव बर्ष मने सबका अच्छा,
दिन–रात नही वो सोया था।
बेटे का जन्म दिवस उस दिन,
बिन अश्रु के वह रोया था।
था समझदार बेटा बोला,
सैनिक की कौम का जाया हूं।
लिख भेज दिया संदेशा की,
सत्रह का होने वाला हूं।
पापा अब देर नहीं होगी,
इतिहास नया हम रच देगें।
बस एक बरस का समय और,
सीमा पर आकर मिल लेंगे।
लेखक/कवि
अभिषेक सोनी “अभिमुख”