सैंकड़ों गोते
सैंकड़ों गोते समुन्दर में लगाये हैं
तब कहीं दो चार मोती हाथ आये हैं
ज़िन्दगी अपनी भी जैसे आक्टोपस हो
रंग इसने भी उसी जैसे दिखाये हैं
छोड़ तो आये ख़ुशी से गाँव हम लेकिन
कष्ट शहरों में भी हमने कम न पाये हैं
अक़्ल आती है कहाँ बादाम खाने से
धोखे अपनो से हज़ारों बार खाये हैं
जंगली फूलों का रखवाला नहीं कोई
हौसला फूलों का है जो मुस्कुराये हैं
दर्द मेरा भी समझ ऐ नींद के मालिक
आँख में सपने बड़े मुश्किल से आये हैं
शिवकुमार बिलगरामी