सेहन्ता (मार्मिक कविता)
हमरो छल एकटा सेहन्ता औ बाबू
कहियो त उठी कहब अहाँ
आब उठू यौ बौआ भेलैए भोर
अहाँक दोस महीम कए रहल छथि सोड़।।
हिचुकै हिंचुकै एसगर हम कनैत छलहु
देखितहुँ अहाँ से छुटि नहि भेल
हालो चाल त पुछितहुँ हमर
मुदा कहियो अहाँ के सेहन्तो नहि भेल।।
हमर सेहन्ता एकटा सपने रहि गेल
कहियो अहाँक हृदय मे हमर स्नेह नहि भेल
कहियो ने दुलार कए उठेलहु हमरा औ बाबू
विधतो केलैन किस्मतक केहेन खेल।।
सोझहे पाईए टा दए देला सँ
बापक फर्ज़ नहि पूरा भए जायत छैक
हमरो बाप केखनो दुलार करितैथ हमरा
अहिं कहू केकरा ने सेहन्ता होइत छैक।।
एहेन विरान जिनगी सँ नीक
हमरा जनमैते किएक नहि मारि देलहु
अपने मगन मे रहलहुँ सब दिन
कुहसैत एसगर हमरा किएक छोड़ि देलहुँ।।
माएक आँचर बापक साया दूनू गोटे
कोनो छोट नेनाक होइत अछि छाया
मुदा केहेन निष्ठुर भेलहु अहाँ
आई धधकि रहल अछि हमर काया।।
हमर किलकारीक गूँज सुनि
कहियो दौगल अबितहुँ अहाँ
कोरा मे लए हमरा दुलार करितहुँ
मुदा कहियो ऐहेन सेहन्ता भेल कहाँ।।
नेनापन के हमर सबटा सेहन्ता
एकटा सपने रहि गेल
मुदा आबो बिचार कए देखू
कहियो अहाँक मुहो मलीन नहि भेल।।
किएक से अहि कहू
हम कोन अपराध केने रही
हमर सबटा सख मनोरथ के बिसैर
अहाँ अपने मगन मे रही।।
हमरा सँ नीक कोनो अनाथ सँ पूछु
केहेन बेबस होइत छैक ओकर जिनगी
अहाँक जिबैतो हम छी अनाथ
एहने बेबस भए गेल हमर जिनगी।।
केहेन वीरान जिनगी भए गेल
आब नहि अछि कोनो सेहन्ता
सबहक बाप सभ केँ दुलार पुचकार करैथ
आब एतबाक अछि कारीगर के सेहन्ता।।
कवि:- किशन कारीगर
(©काॅपीराईट)