सेवानिवृत्त आदमी
गहरी निंद्रा से जब ऑंखें खुली तो
अचानक सतरंगी सपना हुआ भंग
कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था
देख कर सूरज का बदला हुआ रंग
अंदर ही अंदर लग रहा था जैसे कि
उखाड़ बाहर फेंका हो बाग से माली
सजीव कहाॅं लग रहा था कहीं से मैं
पूरा तन और मन था उर्जा से खाली
अब तो मुझे ऐसा लगने लगा है कि
पूरा जीवन हो गया है एकदम सूना
अब मेरी सारी क्षमता गुम हो गई है
एकांकी जीवन ही दुःख करेगा दूना
घर के लिए कभी दो पैसे जोड़ने वाला
आज गुमसुम सा एक कोने में पड़ा है
अब वह बिना ही किसी काम काज के
अपने घर में ही मिट्टी का कच्चा घड़ा है
सुबह सुबह काम पर जाने की आदत
अब तो एकबारगी ही जैसे छूट गई
ये सब देख कर लगता तो ऐसा है कि
जिंदगी की अन्तिम आस ही टूट गई
बदला तो कुछ भी नहीं है इस घर में
सब कुछ पहले की तरह ही हो रहा है
अब मेरे लिए किसी को भी जल्दी नहीं
यही देख कर तो अब मेरा मन रो रहा है