#सेल्फी # शौक या मनोविकार
अगर आप सेल्फी के शौकीन हैं तो पढ़ें मेरा लेख –
नारसीसिज्म
जिसका अर्थ है आत्म प्रेम-
हम इस शब्द की चर्चा क्यों कर रहे हैं । मनोवैज्ञानिक रूप से नारसीसिज्म बालक की विशेषता मे बताया गया है ।जिसमें बालक अपने शरीर को सुंदर दिखने के लिए तरह तरह के क्रीम जेल बाल मे चेहरो पर लगाते हैं । अपने शरीर को बार बार निहारते रहते हैं ।यही विशेषता नारसीसिज्म कहलाती है ।
पर यह अब अधिक प्रचलन में है।जब सेल्फी का प्रचलन है ।
हर वक्त हर हाल में सेल्फ़ी खींचते हम लोग कहीं नारसीसिज्म नामक रोग से ग्रस्त तो नहीं?
आप सोचते होंगे कि ये इक ओर बीमारी…. आखिर ये कौन सी नयी बीमारी है? दोस्तो अगर बात चिकित्सा विज्ञान करें तो इस बीमारी से प्रभावित मरीज हर वक्त आईने के सामने खड़ा होकर खुद पर इतराता रहता है। वह आईने के सामने खुद को अलग अलग भाव भंगिमाओं में पेश करता है और आजकल तो मोबाइल पर भिन्न भिन्न प्रकार की सेल्फ़ी खींचता है, वास्तव में ये एक मानसिक रोग है। अगर इस बात को समझना है कि इस बीमारी की उत्पत्ति कहां से हुई यानीकी यह नाम नारसीसिज्म कैसे पड़ा तो हमें यूनान की एक कहानी पर विश्वास करना होगा।
इस कहानी के अनुसार यह उस वक्त की बात है जब मोबाइल तो क्या आईने का अविष्कार भी नहीं हुआ था। एक इंसानी बस्ती से एक 14-15 वर्ष का लड़का जिसका नाम नारसी था एक नदी के किनारे से गुजर रहा था कि उसने यकायक पानी में खुद की परछाईं देखी। उसने पहले कभी भी इतनी प्यारी सुरत के दर्शन नही किए थे। उस लड़के को उस सूरत से प्यार हो गया जो कि असलियत में उसका प्रतिबिंब थी। उसे इश्क का ऐसा भूत सवार हुआ कि वह उसे ही निहारता रहता। जबभी उसे छूने की कोशिश करता तो पानी में हुई हलचल के कारण वह परछाई आलोप हो जाती। इस तरह उस लड़के के जहन में वह तस्वीर ऐसी बसी कि वह वापस घर नही गया और वहीं मर गया।
आज तकरीबन तकरीबन उसी नारसीस वाली स्थिति हमारे कुछ फेसबुक ह्वासैप मित्रों की है ये लोग आए दिन अपनी अलग अलग मुद्राओं में भिन्न भिन्न कोणो से खिंची हुई तस्वीरें या सेल्फ़ी पोस्ट करते हैं और शुरू हो जाता उनके मित्रों दव्ारा तारीफ़ों का सिलसिला। यह यदि हमे बहुत भाता है तो सावधान हो जाए।यह हमारी धारणा मे शामिल हो सकता है ।
बचे अन्यथा मानसिक रोग
आपके अंदर घर कर जाएगा ।
आपको पता भी नहीं चलेगा ।
विन्ध्य प्रकाश मिश्र विप्र विचार