सेल्फी या सेल्फिश
लघुकथा
सेल्फी या सेल्फिश
“सर, आपने अपने इस वृद्धाश्रम में विडियोग्राफी और फोटोग्राफी पर प्रतिबंध क्यों लगा दिया है ? शहर की अन्य वृद्धाश्रम और अनाथाश्रम में तो ऐसा प्रतिबंध नहीं है। फिर यहाँ क्यों ?” रिपोर्टर ने आश्रम के मैनेजर से सवाल किया।
“देखिए जनाब, कहाँ क्या होता है या क्या नहीं होता है, ये हम जानना नहीं चाहते हैं। हमारे इस आश्रम में भी पहले फोटोग्राफी और विडियोग्राफी प्रतिबंधित नहीं थी। इससे कुछ लोग थोड़ा-बहुत कुछ भी खाने-पीने या पहनने-ओढ़ने का सामान लेकर आ जाते थे और यहाँ के बुजुर्गों को देते हुए विभिन्न ऐंगल से फोटो खिंचवाते, विडियोग्राफी करते और सोसल मीडिया में अपनी दानवीरता की ढोल पीटते थे। इससे कहीं न कहीं हमारे आश्रम के वरिष्ठ रहवासियों की भावनाएँ आहत होती थीं और वे स्वयं को अपमानित महसूस करते थे। इसलिए हमने ये नया नियम बनाया है।” मैनेजर ने बताया।
“पर इससे नुकसान तो आश्रम को या कहें कि यहाँ के वरिष्ठ रहवासियों को ही उठाना पड़ रहा होगा। अब लोग कम आ रहे होंगे।” रिपोर्टर ने फिर से सवाल दागा।
“जी हाँ, यह सच है कि अब हमारे यहाँ लोगों का आना कुछ कम जरूर हो गया है, पर बंद नहीं हुआ है। परंतु इसका हमें या हमारे वरिष्ठ रहवासियों को कोई गम नहीं है। अब जो भी लोग आ रहे हैं, वे कम से कम इनका अपने ही घर में अपमान तो नहीं करते हैं। उनके स्वाभिमान को ठेस तो नहीं पहुँचा रहे हैं। वैसे भी हमारे यहाँ रहने के लिए कोई भी व्यक्ति शौक से तो नहीं आता। वैसे हमें यह बात कभी नहीं भूलनी चाहिए कि ये वे लोग हैं, जो अपनों के द्वारा ठुकराए हुए हैं। इनका कलेजा पहले से ही छलनी हुआ है। ऐसी स्थिति में हमारी यह कोशिश होनी चाहिए कि यहाँ उन्हें कम से कम यहाँ थोड़ी-सी शांति और सुकून तो मिले।” कहते हुए बुजुर्ग मैनेजर का गला भर आया था।
“वाकई सर, आपकी सोच को हमारी ग्रैंडसेल्यूट। आशा है लोग आपकी भावनाओं को समझेंगे और भविष्य में थोड़ी-सी लाइक, कॉमेंट्स या तारीफ के लालच में कभी किसी की भावनाओं को यूँ आहत नहीं करेंगे।” रिपोर्टर ने विनम्रतापूर्वक हाथ जोड़कर कहा।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़